सुल्तान राठौर "" जसरासर""

सुल्तान राठौर  "" जसरासर""

Friday 11 March 2011

"""" लिपट तिरंगे जो घर वो आये """




"""  लिपट   तिरंगे   जो   घर  वो  आये  """



लिपट तिरंगे  जो घर वो आये -
गमगीन उनका आशियानां था -

हर कोई था, सहमा - सहमा -
हर कोई इस गम से अंजाना था -

हुआ, क्या क्यों और कैसे - 
ये सवाल हर मन में आना था -


लिपट तिरंगे  जो घर वो आये -
गमगीन उनका आशियानां था -

रो रहा था आसमां,  रो रहा था आसमां - 
रोना तो हर शक्स को आना था - 

एक तरफ था, गर्व उनपर, 
एक तरफ सब कुछ हमारा लुट जाना  था

किसी का भाई आज दूर उनसे हो जाना था - 
किसी का प्यारा लाल आज दूर उनसे हो जाना था - 

किसी का बेटा, किसी का भाई, हर किसी का कुछ लुट जाना था - 
किसी का कुछ तो किसी का कुछ, किसी का तो सब कुछ लुट जाना था - 

हुआ वही जो हुआ ओरो संग, 
किसी का कुछ  तो किसी का कुछ, किसी का सब कुछ लुट जाना था -

लिपट तिरंगे  जो घर वो आये -
गमगीन उनका आशियानां था -



सुल्तान  सिंह * जसरासर  * 
०७७४२९०४१४१












5 comments:

  1. शहीद की शहादत व उनके घरवालों की भावनाओं का बहुत उम्दा चित्रण किया है आपने.......सलाम इस कविता को व हर शहीद व उनके घरवालों को.....

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  2. आपका बहुत बहुत आभार प्रिय रोली जी
    आप मुझे इस कविता की कमजोरी से वाकिफ करवावे
    जिससे मेरी लिखने की छमता बढे,
    आप हमारा मार्गदर्शन करे,


    सुल्तान राठोर

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  3. बढ़िया अभिव्यक्ति

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  4. संवेदनशील अभिव्यक्ति..... इन वीर शहीदों को नमन

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